आज के युग की नारी poem by lovely mahaur....
आज के युग की नारी हूं
हां स्वतंत्र हूं समाज में विचार व्यक्त करने को,
हर क्षेत्र में बराबरी का भागीदार बनने को ,
न जाने कितनी बार हार कर बड़ी हूं जीत की तरफ,
संपूर्ण जीत के लिए कभी लडूं न जाने कब तलक ।
जकड़े हुए थे जो मुझे तोड़ दी वह बेड़ियां,
पकड़े हुए थे जो मुझे छोड़ दी वो रीतियां,
वजूद की तलाश में बदल गई हूं आज मैं,
गढी है थोड़ी कामयाबी पर हूं थोड़ी निराश हूं मैं,
न चाहूंगी कहे कोई मैं अबला बेचारी हूं,
मैं भारत का भाग्य गढुंगी मैं आज के युग में नारी हूं।
होती हैं चर्चा मर्यादा पर मैं उस समाज में रहती हूं,
राम सिया का वर्णन करके एक कथा आपसे कहती हूं,
जब सीता के पावन चरित्र पर कुछ पापी उंगली उठा रहे थे ,
तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रक्षा नारी कि नहीं कर पा रहे थे,
संतान जैसी प्रजा ने मां के आंचल पर दाग लगाया था,
तो रखने सम्मान नारी का जिंदा सीता ने खुद संकल्प उठाया था,
स्वाभिमान बचाया नारी का श्रीराम का साथ भी छोड़ दिया,
रिश्ते नाते बंधन सारे मन मार के सब को तोड़ दिया,
राजमहल का त्याग किया जंगल की राह पकड़ ली थी ,
स्त्री के स्वाभिमान की रक्षा को सिया ,
सब कुछ पीछे छोड़ के चल दी थी।
उसी सिया के देश में देखो सिनेमा कैसे नाम कमा रहा है,
मां बहनों को गाली दे कर मार्केट वैल्यू पढ़ रहा है ,
मां की आंख वाक्य को अब संगीत के स्वर में खोल चुका है,
और हर घटिया गाना डीजे पर मां को गाली बोल रहा है ,
अपशब्द कहे जो माता को बडे ही नीच प्रवृत्ति के होते हैं ,
यह पूछ नहीं रही बता रही हूं ,
इसको भी हिंसा कहते हैं,
जख्मी ह्रदय की चीखेंको कलम के जरिए बता रही हूं,
ना हारी है कलम में ना मैं ही हिम्मत हारी हूं ,
मैं भी भारत का भाग्य गढूंगी मैं आज के युग की नारी हूं।
स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र कहानी की सुनी सुनाई दास्तान हूं ,
कहने को तो सब लोग कहते हैं मैं पूरा हिंदुस्तान हूं ,
कोई लिखता कविताएं मुझ पर कोई मुझ पर लेख लिखे,
कोई मेरा कीर्ति यश गाए कोई शक्ति मुझे कहे,
अंबे मां दुर्गा मां कह कर कोई मेरा गुणगान करें ,
कोई कलम उठा कर मेरी सीमाओं का आव्हान करें,
लेकिन मुझे सभी कुछ ऊपरीआडंबर सा लगता है,
जब बेटी बचाओ का नारा पूरे हिंदुस्तान में लगता है।
एक नेता वोटों की खातिर मुझको आधार बनाता है,
हम देंगे सुरक्षा नारी को कह कह कर सत्ता मैं आता है,
पर आज तक अकेली बेटी घर से नहीं निकल सकती हैं ,
चौराहों पर बिना डरे वह पैदल तक नहीं चल सकती हैं,
हाय हया नहीं आती तुमको जो खेल घिनोना दिखा रहे हो,
सम्मान ठीक से दे नहीं पाए क्यों देवी कहकर चिढ़ा रहे हो,
बंद करो यह खेल खेलना वरना अंजाम वही होगा
जख्मी अंतर्मन की ज्वाला का भीषड़ सैलाब प्रकट होगा
अब तक चुप हू तो क्या समझा मैं नारी बेचारी हूं,
मैं भी भारत का भाग्य गढुंगी मैं आज के युग की
मैं भी भारत का भाग्य गढूंगी मैं आज के युग की नारी हूं
AZNAWI KALAM SE....
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