आज के युग की नारी poem by lovely mahaur....

आज के युग की नारी हूं हां स्वतंत्र हूं समाज में विचार व्यक्त करने को, हर क्षेत्र में बराबरी का भागीदार बनने को , न जाने कितनी बार हार कर बड़ी हूं जीत की तरफ, संपूर्ण जीत के लिए कभी लडूं न जाने कब तलक । जकड़े हुए थे जो मुझे तोड़ दी वह बेड़ियां, पकड़े हुए थे जो मुझे छोड़ दी वो रीतियां, वजूद की तलाश में बदल गई हूं आज मैं, गढी है थोड़ी कामयाबी पर हूं थोड़ी निराश हूं मैं, न चाहूंगी कहे कोई मैं अबला बेचारी हूं, मैं भारत का भाग्य गढुंगी मैं आज के युग में नारी हूं। होती हैं चर्चा मर्यादा पर मैं उस समाज में रहती हूं, राम सिया का वर्णन करके एक कथा आपसे कहती हूं, जब सीता के पावन चरित्र पर कुछ पापी उंगली उठा रहे थे , तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रक्षा नारी कि नहीं कर पा रहे थे, संतान जैसी प्रजा ने मां के आंचल पर दाग लगाया था, तो रखने सम्मान नारी का जिंदा सीता ने खुद संकल्प उठाया था, स्वाभिमान बचाया नारी का श्रीराम का साथ भी छोड़ दिया, रिश्ते नाते बंधन सारे मन मार के सब को तोड़ दिया, ...