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कारगिल को वापिस पा लिया

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संतरी ये  सर जमी   संतरी गगन हुआ  माँ भारती के स्वाभिमान को रक्त दे बचा लिया  कुछ मौत से भी लड गए  कुछ ने गले लगा लिया  खदेड के अरि दल को सर जमीं को वापस पा लिया रणबांकुरो के शौर्य ने कारगिल को वापस ला दिया ना जाने कौन है वो लाल देवदूत जान पडते है  वरना प्रकृति के नियम किसके लिए बदलते है शून्य से नीचे तापमान पर जमने लगता है खून जहां  चटखने लगती हैं हड्डी शिथिल पड जाती हैं पेशियां उस _48° ठंड मे जो राइफल्स टांग के निकल पडे  18000फीट ऊंचाई को फतह करने चल पडे  मां भारती की शान पर अरि दल से जाकर भिड गये  नाकाम कर शत्रु की  चाल फहरा दिया तिरंगा है  इस देश की फिजाओं मे उनकी जांबाजी जिंदा है  हर शब्द छोटा पड गया  प्रसंशा मैं उनकी क्या करुं वीरता को उनकी बस सलाम करती जाती हूं मां भारती के भाल को केसरी रंग में रंगा  उनकी शहादतों पे फक्र से नमन करना चाहती हूँ ।

आज के युग की नारी poem by lovely mahaur....

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  आज के युग की नारी हूं  हां स्वतंत्र हूं समाज में विचार व्यक्त करने को,  हर क्षेत्र में बराबरी का भागीदार बनने को  ,  न जाने कितनी बार हार कर बड़ी हूं जीत की तरफ,  संपूर्ण जीत के लिए कभी लडूं न जाने कब तलक । जकड़े हुए थे जो मुझे तोड़ दी वह बेड़ियां,  पकड़े हुए थे जो मुझे छोड़ दी वो रीतियां,  वजूद की तलाश में बदल गई हूं आज मैं,  गढी है थोड़ी कामयाबी पर हूं थोड़ी निराश हूं मैं,  न चाहूंगी कहे कोई मैं अबला बेचारी हूं,  मैं भारत का भाग्य गढुंगी   मैं आज के युग में नारी हूं। होती हैं चर्चा मर्यादा पर मैं उस समाज में रहती हूं, राम सिया का वर्णन करके एक कथा  आपसे कहती हूं, जब सीता के पावन चरित्र पर कुछ पापी उंगली उठा रहे थे , तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रक्षा नारी कि नहीं कर पा रहे थे,  संतान जैसी प्रजा ने मां के आंचल पर दाग लगाया था,  तो रखने सम्मान नारी का जिंदा सीता ने खुद संकल्प उठाया था,  स्वाभिमान बचाया नारी का श्रीराम का साथ भी छोड़ दिया,  रिश्ते नाते बंधन सारे मन मार के सब को तोड़ दिया,  राजमहल का त्याग किया जंगल की राह पकड़ ली थी , स्त्री के स्वाभिमान की रक्षा को सिया , सब कुछ पी

कवी ही जानता है भला क्या राज है कविता

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 पंछी की उड़ानों से उड़ाने उसकी ऊंची है जहां पंछी  भी ना पहुंचे वहां पर भी वह पहुंची है पंछी के सहारे से दिया पैगाम है कविता सकल संसार के संघर्ष का परिणाम है कविता। ज्योति भी न कर पाए रोशनी इस कदर कर दे अंधेरों से निकलकर के उजाला मन तलाक कर दें उस की रोशनी को रोशनी, भला क्या ही समझेगी अंधेरों को मिटा के रोशनी का पैगाम है कविता। कभी लहरें हैं सागर की कभी तूफान बन कर के मुसाफिर की तरह चलती कभी एहसास बनकर के अकेले राहों में चलने का साहस रखती है हरदम तले में सागरों के हैं कभी कभी पर्वत की चोटी पे किसी के प्रेम का सागर,किसी के स्नेह की सरिता  किसी के सब्र की गंगा किसी संघर्ष की गाथा  कभी मां की मोहब्बत को पिता के प्यार को कहती  रहस्यों का अनूठा सा कोई भंडार है कविता । किसी के शौर्य को कहती,किसी पर गर्व करती है  न जाने कब कहां पर क्या कविता संघर्ष करती है । सकल संसार को कुछ चंद शब्दों में समेटे जो हृदय में एहसास बनकर के कभी ईश्वर से भेंटे जो शब्दों के सहारे से आत्मा को जो समझा दे  जो बोले साथ में उसका हमें एहसास करवा दे सकल जीवन की गाथा का एक नाम है कविता। हमेशा सत्य कहती है नहीं कुछ झूठ है

मै आज के युग की नारी हूँ

मै आज के युग की नारी हूँ  

ये प्रथाऐं हैं साहब हमारा धर्म नहीं। जो जीवन मे अवश्य ही होना चाहिए। हमारे समाज की कुछ एसी प्रथाऐ जो आपको सोच-विचार करने को मजबूर कर देगी।

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 ये प्रथाऐ है जो समाज मे व्याप्त हैं एक अनजान शत्रु की तरह। जब समुदाय के अनेक व्यक्ति एक साथ एक ही तरह के उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते हैं तो वह एक सामूहिक घटना होती है जिसे ‘जनरीति’ (Folkways) कहते हैं। यह जनरीति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती रहती है। इस प्रकार हस्तान्तरित होने के दौरान इसे समूह की अधिकाधिक अभिमति प्राप्त होती जाती है, क्योंकि प्रत्येक पीढ़ी का सफल अनुभव इसे और भी दृढ़ बना देता है, यही 'प्रथा' (custom) है। कभी-कभी मानव इन प्रथाओं का पालन कानूनों के समान करता है। क्योंकि उसे समाज का भय होता है, उसे भय होता है लोकनिन्दा का और उसे भय होता है सामाजिक बहिष्कार का। प्रथा की उत्पत्ति एकाएक या एक दिन में नहीं होती। किसी भी प्रथा का विकास धीरे-धीरे और काफी समय में होता है। दैनिक जीवन में मनुष्य के सामने अनेक नवीन आवश्यकताएँ आती रहती हैं। इनमें से कुछ ऐसी होती हैं जो समूह के अधिकतर लोगों से सम्बन्धित होती हैं। इसलिए इस प्रकार की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के साधनों को दूँढ़ निकालने का प्रयत्न किया जाता है। यह साधन सर्वप्रथम एक विचार (concept) य

आगरा अगर शॉपिंग के मूड से आए है तो इन बाजारों को जरूर धूमें । ये आपकी शॉपिंग यादगार बना देंगे।

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धार्मिक नगरी आगरा में जितने आकर्षक पर्यटक स्थल हैं उतने ही आकर्षक है यहां के   मार्केट्स जो आप का ध्यान अपनी तरफ जरूर खींच लेंगे यहां पर सभी मार्केट एक दूसरे से सटी हुए है।      अगर आप आगरा घूमने आए हैं और आपने आगरा के मार्केट को नहीं घूमा है तो  फिर आप कुछ छोड  कर  जा रहे  हो ।  हां बिल्कुल आगरा की मार्केट खूबसूरती देखते बनती है आगरा का सिंधी बाजार  बाजार काफी लुभावनी जगह है  यहाँ पर बिकने वाली  हर  चीज  आपको आकर्षित करेगा आप कभी आगरा आए तो यह बाजार एक बार जरूर घूमे यहां सबसे आकर्षक है सिंधी बाजार। दरेसी बाजार  जो  काफी  प्राचीन  है।  Daresi market आज भले ही दरेसी नंबर एक काफी व्यवस्थित और पक्की दुकानों वाला बाजार दिखाई देता हो, लेकिन यह हमेशा से ऐसा नहीं था। इस बाजार की जगह कभी ऊबड़-खाबड़ टीले और झाड़ियां हुआ करतीं थी। मनकामेश्वर मंदिर और आगरा फोर्ट स्टेशन के नजदीक होने के कारण यहां हलचल रहती थी, लेकिन जगह खाली थी। इस कारण पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए सिंधी समाज के लोगों ने इस जमीन को अपने हाथों से समतल किया और झाड़ियों को हटाकर लकड़ी के खोखे लगाए और उनमें कपड़े का व्यापार शुरू किया। इस

AGRA THE CITY OF (TAJ ) इतिहास ए आगरा

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आगरा मेरा  शहर आगरा  उत्तरी भारत उत्तर प्रदेश, भारत में यमुना नदी के तट पर एक शहर है। यह राज्य की राजधानी लखनऊ के 378 किलोमीटर पश्चिम में है,राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से 206 किमी दक्षिण में, मथुरा से 58 किलोमीटर दक्षिण और ग्वालियर से 125 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। आगरा उत्तर प्रदेश के सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से एक है और भारत में 24 वां आबादी वाला शहर है। आम तौर पर यह स्वीकार किया जाता है कि आगरा महाभारत के समय से एक प्राचीन शहर था और फिर भी दिल्ली सल्तनत के मुस्लिम शासक सुल्तान सिकंदर लोदी  ने 1504 में आगरा की स्थापना की। सुल्तान की मृत्यु के बाद, शहर अपने बेटे सुल्तान इब्राहिम लोदी को पास कर दिया। उन्होंने आगरा से अपने सुल्तानत पर शासन किया जब तक वह 1526 में लनीपत की पहली लड़ाई में मुगल बदशा (सम्राट) बाबर से लड़ने तक गिर गए। Agra Agra location by Googlemap मुगलों के साथ शहर की सुनहरी उम्र शुरू हुई। इसे अकबरबाद के रूप में जाना जाता था और बादशाह (सम्राट) अकबर, जहांगीर और शाहजहां के तहत मुगल साम्राज्य की राजधानी बना रहा। अकबर ने इसे अपने मूल बारह उपहास (शाही शीर्ष-स्तर के प्र